Shanivar Vrat Katha - dharmdhyan

शनिवार का दिन शनि देव की पूजा करने के  लिए है  इस दिन शनि देव की पूजा करने से वे प्रसन्न होते हैं 

और भक्तों के कष्ट दूर करते हैं जिनकी कुंडली में शनि दोष ( Shani Dosh ), शनि की साढ़ेसाती या ढैय्या होती है।


 

Shanivar Vrat Katha
Shanivar Vrat Katha


Shanivar Vrat Katha - शनिवार की व्रत कथा

उनको शनिवार का व्रत करना चाहिए और शनिवार व्रत कथा पढ़नी चाहिए शनि देव के इस कथा (Shani Dev Katha) का श्रवण करने से सभी कष्ट दूर हो जाते हैं और शनि देव की कृपा प्राप्त होती है आइए जानते हैं शनि देव की इस कथा के बारे में।

 

हर व्यक्ति के जीवन में शनि देव की अहम भूमिका होती है, अगर कुंडली में शनि सबसे अच्छी स्थिति में हो तो यह व्यक्ति को बहुत ही कम समय में बड़ी सफलता देते है इसलिए हर संभव प्रयास करके शनि को प्रसन्न करना चाहिए। 1111

 

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शनिदेव व्रत विधि :-
Shani dev vrat vidhi :-

     यह पूजा और व्रत शनिदेव को प्रसन्न करने हेतु होता है काला तिल, तेल, काला वस्त्र, काली उड़द शनि देव को अत्यंत प्रिय है इनसे ही पूजा होती है शनि देव का स्त्रोत पाठ करें ,शनिस्त्रोत शनिवार का व्रत यूं तो आप वर्ष के किसी भी शनिवार के दिन शुरू कर सकते हैं।

    परंतु श्रावण मास में शनिवार का व्रत प्रारम्भ करना अति मंगलकारी है इस व्रत का पालन करने वाले को शनिवार के दिन प्रात: ब्रह्म मुहूर्त में स्नान करके शनिदेव की प्रतिमा की विधि सहित पूजन करनी चाहिए।

    शनि भक्तों को शनिवार के दिन शनि मंदिर में जाकर शनि देव को नीले लाजवन्ती का फूल, तिल, तेल, गुड़ अर्पण करना चाहिए। शनि देव के नाम से दीपोत्सर्ग करना चाहिए। शनिवार के दिन शनिदेव की पूजा के पश्चात उनसे अपने अपराधों एवं जाने अनजाने जो भी आपसे पाप कर्म हुआ हो उसके लिए क्षमा याचना करनी चाहिए।

 

 

शनि देव जी कथा - shani dev vrat katha

    एक समय स्वर्गलोक में सबसे बड़ा कौन के प्रश्न को लेकर सभी देवताओं में वाद-विवाद प्रारम्भ हुआ और फिर परस्पर भयंकर युद्ध की स्थिति बन गई सभी देवता देवराज इंद्र के पास पहुंचे और बोले, देवराज! आपको निर्णय करना होगा कि नौ ग्रहों में सबसे बड़ा कौन है देवताओं का प्रश्न सुनकर देवराज इंद्र उलझन में पड़ गए और कुछ देर सोच कर बोले, देवगणों! मैं इस प्रश्न का उत्तर देने में असमर्थ हूं।

 

पृथ्वीलोक में उज्ज्यिनी नगरी में राजा विक्रमादित्य का राज्य है हम राजा विक्रमादित्य के पास चलते हैं क्योंकि वह न्याय करने में अत्यंत लोकप्रिय हैं उनके सिंहासन में अवश्य ही कोई जादू है कि उस पर बैठकर राजा विक्रमादित्य दूध का दूध और पानी का पानी अलग करने का न्याय करते हैं।

 

देवराज इंद्र के आदेश पर सभी देवता पृथ्वी लोक में उज्ज्यिनी नगरी में पहुंचे. देवताओं के आगमन का समाचार सुनकर स्वयं राजा विक्रमादित्य ने उनका स्वागत किया महल में पहुंचकर जब देवताओं ने उनसे अपना प्रश्न पूछा तो राजा विक्रमादित्य भी कुछ देर के लिए परेशान हो उठे क्योकि सभी देवता अपनी-अपनी शक्तियों के कारण महान शक्तिशाली थे किसी को भी छोटा या बड़ा कह देने से उनके क्रोध के प्रकोप से भयंकर हानि पहुंच सकती थी।

 

तभी राजा विक्रमादित्य को एक उपाय सूझा और उन्होंने विभिन्न धातुओं- स्वर्ण, रजत, कांसा, तांबा, सीसा, रांगा, जस्ता, अभ्रक, व लोहे के नौ आसन बनवाए. धातुओं के गुणों के अनुसार सभी आसनों को एक-दूसरे के पीछे रखवा कर उन्होंने देवताओं को अपने-अपने सिंहासन पर बैठने को कहा सब देवताओं के बैठने के बाद राजा विक्रमादित्य ने कहा, आपका निर्णय तो स्वयं हो गया. जो सबसे पहले सिंहासन पर विराजमान है, वही सबसे बड़ा है राजा विक्रमादित्य के निर्णय को सुनकर शनि देवता ने सबसे पीछे आसन पर बैठने के कारण अपने को छोटा जानकर क्रोधित होकर कहा, राजन! तुमने मुझे सबसे पीछे बैठाकर मेरा अपमान किया है।

 

तुम मेरी शक्तियों से परिचित नहीं हो मैं तुम्हारा सर्वनाश कर दूंगा, सूर्य एक राशि पर एक महीने, चंद्रमा सवा दो दिन, मंगल डेढ़ महीने, बुध और शुक्र एक महीने, वृहस्पति तेरह महीने रहते हैं लेकिन मैं किसी राशि पर साढ़े सात वर्ष रहता हूं. बड़े-बड़े देवताओं को मैंने अपने प्रकोप से पीड़ित किया है राम को साढ़े साती के कारण ही वन में जाकर रहना पड़ा और रावण को साढ़े साती के कारण ही युद्ध में मृत्यु का शिकार बनना पड़ा।

 

उसके वंश का सर्वनाश हो गया. राजा! अब तू भी मेरे प्रकोप से नहीं बच सकेगा राजा विक्रमादित्य शनि देवता के प्रकोप से थोड़ा भयभीत तो हुए लेकिन उन्होंने मन में विचार किया, मेरे भाग्य में जो लिखा होगा, ज्यादा से ज्यादा वही तो होगा. फिर शनि के प्रकोप से भयभीत होने की आवश्यकता क्या है?

 

उसके बाद अन्य ग्रहों के देवता तो प्रसन्नता के साथ वहां से चले गए, लेकिन शनिदेव बड़े क्रोध के साथ वहां से विदा हुए राजा विक्रमादित्य पहले की तरह ही न्याय करते रहे. उनके राज्य में सभी स्त्री पुरुष बहुत आनंद से जीवन-यापन कर रहे थे कुछ दिन ऐसे ही बीत गए. उधर शनिदेवता अपने अपमान को भूले नहीं थे विक्रमादित्य से बदला लेने के लिए एक दिन शनिदेव ने घोड़े के व्यापारी का रूप धारण किया और बहुत से घोड़ों के साथ उज्ज्यिनी नगरी में पहुंचे.

 

राजा विक्रमादित्य ने राज्य में किसी घोड़े के व्यापारी के आने का समाचार सुना तो अपने अश्वपाल को कुछ घोड़े खरीदने के लिए भेजा अश्वपाल ने वहां जाकर घोड़ों को देखा तो बहुत खुश हुआ लेकिन घोड़ों का मूल्य सुन कर उसे बहुत हैरानी हुई घोड़े बहुत कीमती थे. अश्वपाल ने जब वापस लौटकर इस संबंध में बताया तो राजा ने स्वयं आकर एक सुंदर व शक्तिशाली घोड़े को पसंद किया।

 

घोड़े की चाल देखने के लिए राजा उस घोड़े पर सवार हुआ तो वह घोड़ा बिजली की गति से दौड़ पड़ा. तेजी से दौड़ता हुआ घोड़ा राजा को दूर एक जंगल में ले गया और फिर राजा को वहां गिराकर जंगल में कहीं गायब हो गया राजा अपने नगर को लौटने के लिए जंगल में भटकने लगा।

 

लेकिन उसे लौटने का कोई रास्ता नहीं मिला राजा को     भूख-प्यास लग आई. बहुत घूमने पर उसे एक चरवाहा मिला राजा ने उससे पानी मांगा पानी पीकर राजा ने उस चरवाहे को अपनी अंगूठी दे दी फिर उससे रास्ता पूछकर वह जंगल से बाहर निकलकर पास के नगर में पहुंचा


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 राजा ने एक सेठ की दुकान पर बैठकर कुछ देर आराम किया उस सेठ ने राजा से बातचीत की तो राजा ने उसे बताया कि मैं उज्ज्यिनी से आया हूं. राजा के कुछ देर दुकान पर बैठने से सेठजी की बहुत बिक्री हुई सेठ ने राजा को बहुत भाग्यवान समझा और उसे अपने घर भोजन के लिए ले गया सेठ के घर में सोने का एक हार खूंटी पर लटका हुआ था. राजा को उस कमरे में अकेला छोड़कर सेठ कुछ देर के लिए बाहर गया।

 

तभी एक आश्चर्यजनक घटना घटी. राजा के देखते-देखते सोने के उस हार को खूंटी निगल गई, सेठ ने कमरे में लौटकर हार को गायब देखा तो चोरी का सन्देह राजा पर ही किया, क्योंकि उस कमरे में राजा ही अकेला बैठा था. सेठ ने अपने नौकरों से कहा कि इस परदेसी को रस्सियों से बांधकर नगर के राजा के पास ले चला राजा ने विक्रमादित्य से हार के बारे में पूछा तो उसने बताया कि उसके देखते ही देखते खूंटी ने हार को निगल लिया था।

 

इस पर राजा ने क्रोधित होकर चोरी करने के अपराध में विक्रमादित्य के हाथ-पांव काटने का आदेश दे दिया, राजा विक्रमादित्य के हाथ-पांव काटकर उसे नगर की सड़क पर छोड़ दिया गया. कुछ दिन बाद एक तेली उसे उठाकर अपने घर ले गया और उसे अपने कोल्हू पर बैठा दिया राजा आवाज देकर बैलों को हांकता रहता इस तरह तेली का बैल चलता रहा और राजा को भोजन मिलता रहा शनि के प्रकोप की साढ़े साती पूरी होने पर वर्षा ॠतु प्रारम्भ हुई।

 

राजा विक्रमादित्य एक रात मेघ मल्हार गा रहा था कि तभी नगर के राजा की लड़की राजकुमारी मोहिनी रथ पर सवार उस तेली के घर के पास से गुजरी, उसने मेघ मल्हार सुना तो उसे बहुत अच्छा लगा और दासी को भेजकर गानेवाले को बुला लाने को कहा. दासी ने लौटकर राजकुमारी को अपंग राजा के बारे में सब कुछ बता दिया।

 

राजकुमारी उसके मेघ मल्हार पर बहुत मोहित हुई थी अत:उसने सब कुछ जानकर भी अपंग राजा से विवाह करने का निश्चय कर लिया राज कुमारी ने अपने माता-पिता से जब यह बात कही तो वे हैरान रह गये राजा को लगा कि उसकी बेटी पागल हो गई है रानी ने मोहिनी को समझाया, बेटी! तेरे भाग्य में तो किसी राजा की रानी होना लिखा है फिर तू उस अपंग से विवाह करके अपने पांव पर कुल्हाड़ी क्यों मार रही है।

 

राजा ने किसी सुंदर राजकुमार से उसका विवाह करने की बात कही लेकिन राजकुमारी ने अपनी जिद नहीं छोड़ी अपनी जिद पूरी कराने के लिए उसने भोजन करना छोड़ दिया और प्राण त्याग देने का निश्चय कर लिया आखिर राजा, रानी को विवश होकर अपंग विक्रमादित्य से राजकुमारी का विवाह करना पडा विवाह के बाद राजा विक्रमादित्य और राजकुमारी तेली के घर में रहने लगे उसी रात स्वप्न में शनिदेव ने राजा से कहा, आज! तुमने मेरा प्रकोप देख लिया. मैंने तुम्हें अपने अपमान का दण्ड दिया है।

 

राजा ने शनिदेव से क्षमा करने को कहा और प्रार्थना की, हे शनिदेव! आपने जितना दु:ख मुझे दिया है, अन्य किसी को न देना, शनिदेव ने कुछ सोचते हुए कहा, अच्छा! मैं तेरी प्रार्थना स्वीकार करता हूं. जो कोई स्त्री-पुरुष मेरी पूजा करेगा, शनिवार को व्रत कर के मेरी कथा सुनेगा, उस पर मेरी अनुकम्पा बनी रहेगी. उसे कोई दुख नहीं होगा।

 

शनिवार को व्रत करने और चींटियों को आटा डालने से मनुष्य की सभी मनोकामनाएं पूरी होंगी. प्रात:काल राजा विक्रमादित्य की नींद खुली तो अपने हाथ-पांव देखकर राजा को बहुत खुशी हुई. उसने मन-ही-मन शनिदेव को प्रणाम किया. राजकुमारी भी राजा के हाथ-पांव सही सलामत देखकर आश्चर्य में डूब गई. तब राजा विक्रमादित्य ने अपना परिचय देते हुए शनिदेव के प्रकोप की सारी कहानी कह सुना।

 

सेठ को जब इस बात का पता चला तो दौड़ता हुआ तेली के घर पहुंचा और राजा के चरणों में गिरकर क्षमा मांगने लगा. राजा ने उसे क्षमा कर दिया, क्योकि यह सब तो शनिदेव के प्रकोप के कारण हुआ था. सेठ राजा को अपने घर ले गया और उसे भोजन कराया. भोजन करते समय वहां एक आश्चर्यजनक घटना घटी. सबके देखते-देखते उस खूंटी ने वह हार उगल दिया सेठजी ने अपनी बेटी का विवाह भी राजा के साथ कर दिया और बहुत से स्वर्ण-आभूषण, धन आदि देकर राजा को विदा किया।


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राजा विक्रमादित्य राजकुमारी मोहिनी और सेठ की बेटी के साथ उज्ज्यिनी पहुंचे तो नगरवासियों ने हर्ष से उनका स्वागत किया. उस रात उज्ज्यिनी नगरी में दीप जलाकर लोगों ने दीवाली मनाई. अगले दिन राजा विक्रमादित्य ने पूरे राज्य में घोषणा करवाई, च्शनिदेव सब देवों में सर्वश्रेष्ठ हैं. प्रत्येक स्त्री पुरुष शनिवार को उनका व्रत करें और व्रत कथा अवश्य सुनें. राजा विक्रमादित्य की घोषणा से शनिदेव बहुत प्रसन्न हुए. शनिवार का व्रत करने और कथा सुनने के कारण सभी लोगों की मनोकामनाएं शनिदेव की अनुकम्पा से पूरी होने लगीं. सभी लोग आनन्दपूर्वक रहने लगे।



       

 

Shani aarti pdf


शनि देव महाराज की आरती:-
shani aarti lyrics :-

 

जय जय श्री शनिदेव भक्तन हितकारी ।

 सूर्य पुत्र प्रभु छाया महतारी ॥

 

|| जय जय श्री शनि देव ... ||

 

श्याम अंग वक्र-दृ‍ष्टि चतुर्भुजा धारी।

 नीलाम्बर धार नाथ गज की असवारी॥

 

|| जय जय श्री शनि देव…. ||

 

क्रीट मुकुट शीश राजित दिपत है लिलारी।

 मुक्तन की माला गले शोभित बलिहारी॥

 

|| जय जय श्री शनि देव….||

 

मोदक मिष्ठान पान चढ़त हैं सुपारी।

 लोहा तिल तेल उड़द महिषी अति प्यारी॥

 

|| जय जय श्री शनि देव….||

 

देव दनुज ऋषि मुनि सुमिरत नर नारी।

 विश्वनाथ धरत ध्यान शरण हैं तुम्हारी॥

 

जय जय श्री शनिदेव भक्तन हितकारी ।

 सूर्य पुत्र प्रभु छाया महतारी ॥


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bhagwan shani dev ki aarti

Jai Jai Shri Shani Dev Bhaktan Hitkari ।
Suraj Ke Putra Prabhu Chaya Mehatari ॥


॥ Jai Jai Shri Shani..॥

Shyam Ank Vakra Drisht Chaturbhurja Dhari ।
Nilamber Dhar Nath Gaj Ki Aswari ॥


॥ Jai Jai Shri Shani..॥

Krit Mukut Sheesh Sahej Dipat Hain Lilari ।
Muktan Ki Mala Gale Shobhit Balihari ॥


॥ Jai Jai Shri Shani..॥

Modak Mishtaan Pan Chadhat Hain Supari ।
Loha, Til, Urad Mahishi Ati Pyari ॥


॥ Jai Jai Shri Shani..॥

Dev Danuj Rishi Muni Surat Nar Nari ।
Vishwanath Dharat Dhayan Sharan Hain Tumhari ॥


Jai Jai Shri Shani Dev Bhaktan Hitkari ।
Suraj Ke Putra Prabhu Chaya Mehatari ॥


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