शुक्रवार की संतोषी माता व्रत कथा - Shukravar vrat katha - Dharm dhyan

 शुक्रवार के दिन संतोषी माता की भी पूजा की जाती है। इन्हें संतुष्टि की मां भी कहा जाता है। 

कहा जाता है कि अगर संतोषी माता का व्रत 16 शुक्रवार तक किया जाए तो व्यक्ति की हर मनोकामना पूरी होती है।


Shukravar vrat ki katha - शुक्रवार की संतोषी माता व्रत कथा


Shukravar vrat ki katha
Shukravar vrat ki katha




शुक्रवार के दिन संतोषी माता का व्रत करने से प्राप्त होते हैं ये 6 शुभ फल :-

शुक्रवार के दिन संतोषी माता की भी पूजा की जाती है। इन्हें संतुष्टि की मां भी कहा जाता है। विशेषतौर पर इन्हें उत्तर भारत की महिलाओं द्वारा पूजा जाता है। कहा जाता है 

कि अगर संतोषी माता का व्रत 16 शुक्रवार तक किया जाए तो व्यक्ति की हर मनोकामना पूरी होती है। संतोषी माता को फूल, धूप और एक कटोरी कच्ची चीनी और भुने चने अर्पित करने चाहिए। कई लोग सुबह उठते ही देवी का स्मरण करना चाहिए। 

जो व्यक्ति व्रत करते हैं उन्हें दिन में केवल एक बार भोजन करना चाहिए साथ ही खट्टा खाने से परहेज करना चाहिए। इस दिन खट्टा खाना वर्जित होता है 16 वें दिन संतोषी माता के व्रत का उद्यापन किया जाता है।

मां संतोषी को शुक्रवार का दिन बेहद प्रिय है। अगर इस दिन पूरे विधि-विधान के साथ माता की पूजा की जाए और कथा सुनी जाए तो जीवन के लिए बेहद लाभदायी परिणाम हासिल होते हैं शुक्रवार के दिन मां संतोषी का व्रत करने से व्यक्ति को 6 प्रकार के फल का लाभ होता है। आइए जानते हैं इस व्रत से मिलने वाले लाभ क्या होते हैं।

अगर सच्चे मन से शुक्रवार की पूजा की जाए तो अविवाहित लड़कियों को सुयोग्य वर मिलता है संतोषी माता की अनुकंपा कर अगर व्रत पूरा किया जाए तो भक्तों की सभी मनोकामनाएं पूरी होती हैं।

 यह व्रत करने से छात्र व छात्राएं परीक्षा में सफल होते हैं अगर आपके कोई कानूनी मुकदमे के मामले चल रहे होते हैं तो उनपर आपको विजय प्राप्त होती है व्यक्ति को उसके कारोबार में लगातार लाभ की प्राप्ति होती है इस दिन व्रत करने से घर में सुख-समृद्धि का पुण्यफल की प्राप्ति होती है।



संतोषी माता व्रत कथा :-
santoshi mata katha in hindi :-


माना जाता है कि यह कथा पढ़े बिना संतोषी माता का व्रत अधूरा होता है संतोषी माता व्रत की पौराणिक कथा के अनुसार एक बुढ़िया थी उसका एक ही पुत्र था बुढ़िया पुत्र के विवाह के बाद बहू से घर के सारे काम करवाती थी 

परंतु उसे ठीक से खाना खाने को नहीं देती थी यह सब लड़का देखता पर मां से कुछ भी नहीं कह पाता था बहू दिनभर काम में लगी रहती- उपले थापती, रोटी-रसोई करती, बर्तन साफ करती, कपड़े धोती और इसी में उसका सारा समय बीत जाता था।
 
काफी सोच-विचारकर एक दिन लड़का मां से बोला- 'मां, मैं परदेस जा रहा हूं।' मां को बेटे की बात पसंद आ गई तथा उसे जाने की आज्ञा दे दी। इसके बाद वह अपनी पत्नी के पास जाकर बोला- 'मैं परदेस जा रहा हूं।

 अपनी कुछ निशानी दे दो।' बहू बोली- `मेरे पास तो निशानी देने योग्य कुछ भी नहीं है यह कहकर वह पति के चरणों में गिरकर रोने लगी। इससे पति के जूतों पर गोबर से सने हाथों से छाप बन गई।

पुत्र के जाने बाद सास के अत्याचार बढ़ते गए। एक दिन बहू दु:खी हो मंदिर चली गई। वहां उसने देखा कि बहुत-सी स्त्रियां पूजा कर रही थीं। उसने स्त्रियों से व्रत के बारे में जानकारी ली तो वे बोलीं कि हम संतोषी माता का व्रत कर रही हैं। इससे सभी प्रकार के कष्टों का नाश होता है।

स्त्रियों ने बताया- शुक्रवार को नहा-धोकर एक लोटे में शुद्ध जल ले गुड़-चने का प्रसाद लेना तथा सच्चे मन से मां का पूजन करना चाहिए। खटाई भूल कर भी मत खाना और न ही किसी को देना। एक वक्त भोजन करना।

व्रत विधान सुनकर अब वह प्रति शुक्रवार को संयम से व्रत करने लगी। माता की कृपा से कुछ दिनों के बाद पति का पत्र आया। कुछ दिनों बाद पैसा भी आ गया। उसने प्रसन्न मन से फिर व्रत किया तथा मंदिर में जा अन्य स्त्रियों से बोली- 'संतोषी मां की कृपा से हमें पति का पत्र तथा रुपया आया है।

अन्य सभी स्त्रियां भी श्रद्धा से व्रत करने लगीं। बहू ने कहा- 'हे मां! जब मेरा पति घर आ जाएगा तो मैं तुम्हारे व्रत का उद्यापन करूंगी।'
 
अब एक रात संतोषी मां ने उसके पति को स्वप्न दिया और कहा कि तुम अपने घर क्यों नहीं जाते? तो वह कहने लगा- सेठ का सारा सामान अभी बिका नहीं। रुपया भी अभी नहीं आया है। उसने सेठ को स्वप्न की सारी बात कही तथा घर जाने की इजाजत मांगी।

लेकिन सेठ ने इंकार कर दिया। मां की कृपा से कई व्यापारी आए, सोना-चांदी तथा अन्य सामान खरीदकर ले गए। कर्ज़दार भी रुपया लौटा गए। अब तो साहूकार ने उसे घर जाने की इजाजत दे दी।
 
घर आकर पुत्र ने अपनी मां व पत्नी को बहुत सारे रुपए दिए। पत्नी ने कहा कि मुझे संतोषी माता के व्रत का उद्यापन करना है। उसने सभी को न्योता दे उद्यापन की सारी तैयारी की। पड़ोस की एक स्त्री उसे सुखी देख ईर्ष्या करने लगी थी। उसने अपने बच्चों को सिखा दिया कि तुम भोजन के समय खटाई जरूर मांगना।
 
उद्यापन के समय खाना खाते-खाते बच्चे खटाई के लिए मचल उठे। तो बहू ने पैसा देकर उन्हें बहलाया। बच्चे दुकान से उन पैसों की इमली-खटाई खरीदकर खाने लगे। तो बहू पर माता ने कोप किया। राजा के दूत उसके पति को पकड़कर ले जाने लगे। तो किसी ने बताया कि उद्यापन में बच्चों ने पैसों की इमली खटाई खाई है तो बहू ने पुन: व्रत के उद्यापन का संकल्प किया।
 
संकल्प के बाद वह मंदिर से निकली तो राह में पति आता दिखाई दिया। पति बोला- इतना धन जो कमाया है, उसका कर राजा ने मांगा था। अगले शुक्रवार को उसने फिर विधिवत व्रत का उद्यापन किया। इससे संतोषी मां प्रसन्न हुईं। नौ माह बाद चांद-सा सुंदर पुत्र हुआ। अब सास, बहू तथा बेटा मां की कृपा से आनंद से रहने लगे।


संतोषी माता की आरती - santoshi mata aarti lyrics



जय सन्तोषी माता, मैया जय सन्तोषी माता।

अपने सेवक जन की सुख सम्पति दाता ।।

जय सन्तोषी माता....


सुन्दर चीर सुनहरी मां धारण कीन्हो।

हीरा पन्ना दमके तन श्रृंगार लीन्हो ।।

जय सन्तोषी माता....


गेरू लाल छटा छबि बदन कमल सोहे।

मंद हंसत करुणामयी त्रिभुवन जन मोहे ।।


जय सन्तोषी माता....


स्वर्ण सिंहासन बैठी चंवर दुरे प्यारे।

धूप, दीप, मधु, मेवा, भोज धरे न्यारे।।

जय सन्तोषी माता....


गुड़ अरु चना परम प्रिय ता में संतोष कियो।

संतोषी कहलाई भक्तन वैभव दियो।।

जय सन्तोषी माता....

शुक्रवार प्रिय मानत आज दिवस सोही।

भक्त मंडली छाई कथा सुनत मोही।।

जय सन्तोषी माता....


मंदिर जग मग ज्योति मंगल ध्वनि छाई।

बिनय करें हम सेवक चरनन सिर नाई।।

जय सन्तोषी माता....

भक्ति भावमय पूजा अंगीकृत कीजै।

जो मन बसे हमारे इच्छित फल दीजै।।

जय सन्तोषी माता....


दुखी दारिद्री रोगी संकट मुक्त किए।

बहु धन धान्य भरे घर सुख सौभाग्य दिए।।

जय सन्तोषी माता....


ध्यान धरे जो तेरा वांछित फल पायो।

पूजा कथा श्रवण कर घर आनन्द आयो।।

जय सन्तोषी माता....


चरण गहे की लज्जा रखियो जगदम्बे।

संकट तू ही निवारे दयामयी अम्बे।।

जय सन्तोषी माता....


सन्तोषी माता की आरती जो कोई जन गावे।

रिद्धि सिद्धि सुख सम्पति जी भर के पावे।।

जय सन्तोषी माता....







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